समास के भेद
समास के भेद -
(अ ).अव्ययीभाव समास - जिस समास का प्रथम पद प्रधान और अव्यय होता है , वह अव्ययीभाव समास कहलाता है !
उदाहरण -
बेखटके - बिना खटके
आजन्म - जन्म से लेकर
यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार
आमरण - मरते समय तक
आजीवन - जीवन भर
प्रतिदिन - प्रत्येक दिन
यथाशीघ्र - जितना शीघ्र हो
भरपेट - पेट भरकर
कुछ पुनरुक्त शब्दों द्वारा भी अव्ययीभाव समास बनाये जाते है;
जैसे -:
हाथ ही हाथ - हाथोंहाथ
बीच ही बीच में - बीचोंबीच
(ब)तत्पुरुष समास - जिस समास का उत्तरपद प्रधान तथा पूर्वपद गौण हो, वह तत्पुरुष समास कहलाता है !
जैसे -:
रसोईघर - रसोई के लिए घर
गगनचुम्बी - गगन को चूमने वाला
पथभ्रष्ट - पथ से भ्रष्ट
जन्मांध - जन्म से अंधा
भूदान - भू का दान
कलानिपुण - कला में निपुण
तत्पुरुष समास के छः भेद होते हैं -
1. कर्म तत्पुरुष - इसमें कर्म कारक की विभक्ति 'को' का लोप हो जाता है ;
जैसे -
शरणागत - शरण को आया हुआ
ग्रंथकार - ग्रन्थ को लिखने वाला
माखनचोर - माखन को चुराने वाला
चिड़ीमार - चिड़ियों को मारने वाला
2. करण तत्पुरुष - इसमें करण कारक की विभक्ति 'से' और ' के द्वारा ' का लोप हो जाता है ;
जैसे -
सूरकृत - सूर के द्वारा कृत
मनचाहा - मन से चाहा
भुखमरा - भूक से मारा हुआ
ज्ञानयुक्त - ज्ञान से युक्त
3. सम्प्रदान तत्पुरुष - इसमें सम्प्रदान कारक की विभक्ति ' के लिए ' का लोप हो जाता है ;
जैसे-: हवन सामग्री- हवन के लिए सामग्री
गुरुदक्षिणा - गुरु के लिए दक्षिणा
सत्याग्रह - सत्य के लिए आग्रह
देशभक्ति - देश के लिए भक्ति
4. अपादान तत्पुरुष - इसमें अपादान कारक की विभक्ति 'से' का लोप हो जाता है ;
जैसे -:
जीवनमुक्त - जीवन से मुक्त
धनहीन - धन से हीन
देशनिकाला - देश से निकाला
ऋणमुक्त - ऋण से मुक्त
5. संबंध तत्पुरुष - इसमें संबंध कारक की विभक्ति 'का',की',के' का लोप हो जाता है ;
जैसे -:
पवनपुत्र - पवन का पुत्र
घुड़दौड़ - घोड़ों की दौड़
नियमानुसार - नियम के अनुसार
सेनापति - सेना का पति
6. अधिकरण तत्पुरुष- इसमें अधिकरण कारक की विभक्ति 'में',पर' का लोप हो जाता है ;
जैसे -:
दानवीर - दान में वीर
वनवास - वन में वास
आपबीती - आप पर बीती
पुरषोत्तम - पुरुषों में उत्तम
(स) द्विगु समास - जिस समास का प्रथम पद संख्यावाचक विशेषण हो , वह द्विगु समास कहलाता है !
जैसे-: त्रिवेणी - तीन वेणियों का समूह
त्रिफला - तीन फलों का समूह
चौराहा - चार राहों का समूह
अठन्नी - आठ आनों का समूह
पंचवटी - पाँच वटों का समूह
अठवारा - आठ वारों का समूह
शताब्दी - सौ वर्षों का समूह
सप्तर्षि - सात ऋषियों का समूह
दोपहर - दो पहरों का समूह
सतसई - सात सौ दोहों का समूह
(द) द्वंद्व समास - जिस समास में दोनों पद प्रधान हों,वह द्वंद्व समास कहलाता है !
जैसे -: हार-जीत -- हार और जीत
सुख - दुख -- सुख और दुख
राधा - कृष्ण -- राधा और कृष्ण
दाल - रोटी -- दाल और रोटी
भला -बुरा -- भला और बुरा
जल - थल -- जल और थल
राजा -रंक -- राजा और रंक
माता - पिता -- माता और पिता
पाप - पुण्य -- पाप और पुण्य
दूध - दही -- दूध और दही
(इ) कर्मधारय समास - जिस समास के दोनों पदों में विशेषण -विशेष्य अथवा उपमेय -उपमान का संबंध हो, वह कर्मधारय समास कहलाता है !
जैसे -: (विशेषण -विशेष्य वाले उदाहरण )
नीलाम्बर - नीला है जो अम्बर
महादेव - महान है जो देव
परमानंद - परम है जो आनंद
श्वेताम्बर - श्वेत है जो अम्बर
सद्धर्म - सच्चा है जो धर्म
पुरषोत्तम - पुरुषों में है जो उत्तम
नीलगाय - नीली है जो गाय
कालीमिर्च - काली है जो मिर्च
(उपमेय -उपमान वाले उदाहरण )
घनश्याम - घन के समान श्याम
रमरत्न - राम रूपी रत्न
चन्द्रमुख - चंद्र के समान मुख
कमलनयन - कमल के समान नयन
कनकलता - कनक के समान लता
क्रोधाग्नि - क्रोध रूपी अग्नि
विद्याधन - विद्या रूपी धन
वचनामृत - अमृत रूपी वचन
(पू) बहुब्रीहि समास - जिस समास के दोनों पद गौण हों तथा अर्थ की दृष्टि से कोई अन्य पद प्रधान हो , बहुब्रीहि समास कहलाता है !
जैसे -:
चतुरानन - चार हैं आनन जिसके अर्थात ब्रह्म
चतुर्भुज - चार हैं भुजाएँ जिसकी अर्थात विष्णु
दशानन - दस हैं आनन जिसके अर्थात रावण
वीणापाणि - वीणा हैं हाथ में जिसके अर्थात माँ सरस्वती
त्रिनेत्र - तीन हैं नेत्र जिसके अर्थात शिवजी
लंबोदर - लम्बा है उदर जिसका अर्थात गणेशजी
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