स्वामी विवेकानंद की शरण में एक युवक
स्वामी विवेकानंद की शरण में एक युवक
एक बार की बात है एक युवक बहुत परेशान था। कठिन परिश्रम करने के पश्चात् भी वह दो जून की रोटी नहीं जुटा पाता था। लकड़हारे के घर जन्म लेने के पश्चात् उसका जीवन ग़रीबी में ही बीता। जब वह दूसरे लोगों को आनंद भरा विलासितापूर्ण जीवन जीते देखता तो उसका मन भी ललचा उठता। वह भी एक अच्छा सुखमय जीवन जीना चाहता था। सम्पन्न जीवन जीने के लिए उसने कठिन परिश्रम करना आरम्भ कर दिया। उसने देखा कि कुछ लोग अपने व्यवसाय में बहुत कुशल हैं और धन भी अधिक अर्जित कर रहे हैं। उसने उन सफल व्यक्तियों के काम करने के तरीके की नक़ल भी की ताकि उसे भी कामयाबी मिले और वह भी सभी सुखों का भोग कर सके। परंतु उसके सारे प्रयास विफल हो गए और उसे लगने लगा कि वह कुछ नहीं कर सकता। उसका आत्म विश्वास टूट गया।
जब व्यक्ति अपना विश्वास खो देता है तो उसे कुछ नहीं सूझता। ऐसा ही उस युवक के साथ हुआ।
अंत में उसने सोचा क्यों न वह स्वामी विवेकानंद से मिलकर उनका मार्गदर्शन प्राप्त करे। अत: वह स्वामी विवेकानंद से मिलने पहुँचा। स्वामीजी के पास पहुँच कर उसने विनम्रतापूर्वक प्रणाम किया और बताया,
"स्वामीजी मैं बहुत परेशान हूँ। अथक एवम कठिन परिश्रम करने के पश्चात भी मैं ग़रीबी में जीवन-यापन कर रहा हूँ जबकि मेरे बहुत से जानकार अपने जीवन में विलासिता का आनंद ले रहे हैं। कृपया मेरा मार्गदर्शन करें ताकि मेरा जीवन भी सुखमय हो जाए।"
स्वामी विवेकानंद जी ने देखा की एक हृष्ट-पुष्ट नौजवान हाथ जोड़े उनके सामने खड़ा है और अधिक से अधिक धन तुरंत अर्जन करने की विधि सीखना चाहता है।
स्वामीजी ने उस युवक से पूछा कि, "तुम इतना धन क्यों अर्जित करना चाहते हो?" युवक ने करबद्ध प्रार्थना करते हुए कहा, "मैं आनंदपूर्वक जीवनयापन के लिए अधिक से अधिक धन तुरंत अर्जित करना चाहता हूँ।" स्वामीजी ने आगे पूछा, "ऐसा करने के लिए तुम क्या कर सकते हो?" युवक ने कहा, "इसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। जो आप कहेंगे मैं वही करूँगा।" स्वामी विवेकानंद ने युवक की बात सुनकर उसे समझाया और कहा, "कृपया आप अपने कथन पर पुनः विचार करें क्योंकि जीवन में कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना भी पड़ता है।
बड़ा लाभ पाने के लिए बलिदान भी बड़ा करना पड़ता है।" युवक ने कहा, "स्वामीजी मैंने भली भांति सोच विचार कर यह निर्णय लिया है, मैं अधिक धन अर्जन करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ। कृपया बताएँ कि मुझे करना क्या होगा?" "यदि ऐसी बात है और आपने सोच समझ कर यह निर्णय लिया है तो मैं आपको तुरंत धन अर्जन का एक अति सुगम उपाय बताता हूँ," स्वामीजी ने युवक से कहा। युवक को स्वामीजी के कथन पर विश्वास नहीं हुआ।
क्या स्वामीजी के पास वास्तव में ऐसा कोई उपाय है जिससे तुरंत अधिक धन अर्जित किया जा सके, युवक सोचने लगा। उसे स्वामीजी के कथन पर कुछ शक हुआ अत: उसने स्वामी विवेकानंद से पुनः पूछा— "स्वामीजी मैं आपका बहुत सम्मान करता हूँ परंतु मुझे लगता है आप मेरा उपहास कर रहे हैं क्योंकि मेरे ज्ञान में ऐसा कोई उपाय नहीं है जिससे थोड़े समय में अधिक धन अर्जित हो सके।" स्वामीजी ने कहा, "बच्चा मैं तुम्हारा कोई उपहास नहीं कर रहा बल्कि तुम्हें यह बता रहा हूँ कि अधिक धन तुरंत अर्जित करने के लिए बहुत बड़ा त्याग करना पड़ता है। क्या तुम बड़ा त्याग करने के लिए तैयार हो?" युवक ने कहा, "स्वामीजी आप जो कहेंगे मैं वो त्याग करने के लिए तैयार हूँ, परंतु मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि क्या वास्तव में कोई ऐसा उपाय भी है जिससे तुरंत अधिक धन अर्जित किया जा सके? यदि हाँ, तो कृप्या वह उपाय मुझे तुरंत बताएँ।"
स्वामीजी ने उपाय बताते हुए कहा, "बच्चा ध्यान से मेरी बात सुनो। इस शहर में एक धनी व्यक्ति रहता है परंतु वह नेत्रहीन है। यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति उसे एक नेत्र दान कर दे तो उसका अंधापन दूर हो सकता है और वह पुनः देख पाएगा। इस उपकार के लिए वह दानकर्ता को असीम धन देने को तैयार है। यदि तुम अपनी एक आँख उसे दान कर दो तो उसका बहुत भला होगा और वह पुनः अपनी आँखों से दुनिया को देख सकेगा। इस प्रकार तुम न केवल एक अंधे को नया जीवन दोगे बल्कि तुम्हें वह अपार धन भी देगा, जिससे तुम जीवन के सभी आनंद उठा सकोगे। तुम्हें इतना तो ज्ञात होगा कि इस संसार में असंख्य ऐसे लोग हैं जिनके पास केवल एक ही आँख है और वे लोग एक ही आँख से जीवन का आनंद ले रहे हैं। इसी प्रकार तुम भी जीवन का आनंद अपनी एक आँख से ले सकोगे और तुम्हें मन चाहा धन भी प्राप्त हो जाएगा।" "क्यों, है न एक उत्तम और सरल उपाय जिससे तुम अधिक धन तुरंत प्राप्त कर सकोगे?"
स्वामीजी ने युवक से पूछा? स्वामीजी की बात सुनकर युवक घबरा गया। उसे विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि स्वामीजी ऐसा उपाय बताएँगे। अपनी एक आँख निकाल कर किसी दूसरे व्यक्ति को देने के सुझाव से वह भयभीत हो गया। यह उपाय उसे कुछ ठीक नहीं लगा। लेकिन तुरंत अधिक धन प्राप्ति के लोभ को भी वह त्याग नहीं सका। उसने सोचा स्वामीजी उसकी केवल एक ही आँख मांग रहे हैं दोनों आँखें तो नहीं मांग रहे। स्वामीजी ने ठीक ही कहा है, ‘दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जिनकी एक ही आँख है। वे लोग भी तो जीवन का आनंद उठा रहे हैं तो मैं ऐसा क्यों नहीं कर सकता’, युवक ने सोचा। लेकिन कोई स्थाई निर्णय लेने से पहले युवक इस प्रस्ताव पर भली भांति विचार कर लेना चाहता था।
अत: उसने अपनी एक आँख बंद कर के देखने का प्रयास किया किन्तु उसे सब कुछ स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं दिया जो दोनों आँखों से दिखाई देता है। उसे लगा कि एक आँख दान कर देने से वह पंगु हो जाएगा। यह प्रस्ताव उसे उचित नहीं लगा अत: उसने अपनी एक आँख देने से इंकार कर दिया और कहा, "स्वामीजी मुझे यह प्रस्ताव मंज़ूर नहीं है। मैं अपनी आँख किसी को किसी भी क़ीमत पर देने को तैयार नहीं हूँ।" स्वामीजी युवक की बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और कहा, "अब तुम्हें समझ आया कि तुम्हारी आँख का मूल्य क्या है? इसका मूल्य आँका नहीं जा सकता।"
स्वामीजी ने आगे कहा, "यदि तुम एक आँख नहीं देना चाहते तो कोई बात नहीं। तुम्हारे पास शरीर के और भी अंग हैं और सभी अंग मूल्यवान हैं यदि तुम अब भी तुरंत धन अर्जन करना चाहते हो तो मुझे अपना एक हाथ दान कर दो उसके बदले मैं तुम्हें दो लाख रुपये दूँगा।"
युवक ने हाथ देने से भी इंकार कर दिया। फिर स्वामीजी ने उससे एक पैर माँगा और दो लाख रुपये देने का प्रस्ताव दिया। युवक ने इस प्रस्ताव से भी इंकार कर दिया। युवक को लाखों रुपये तुरंत मिल रहे थे लेकिन उसने लेने से इंकार कर दिया क्योंकि लाखों रुपये के बदले जो कुछ उससे माँगा जा रहा था उसकी क़ीमत को आँका नहीं जा सकता। धन के बदले युवक अपने बहुमूल्य अंग कुर्बान नहीं कर पा रहा था। युवक की बातें सुनकर स्वामीजी मुस्कुराने लगे और युवक से कहा, "तुम्हारे पास धन अर्जन के इतने सारे साधन हैं जिनमें से किसी एक का त्याग करके तुम धनवान बन सकते हो फिर भी तुम अपनी इच्छा पूरी नहीं करना चाहते।
स्वामीजी ने युवक को समझाया कि तुम्हारे पास वह सब कुछ पहले से ही है जो मानव के लिए सबसे मूल्यवान होता है और वह है तुम्हारा स्वस्थ शरीर, तुम्हारा मस्तिष्क, तुम्हारा ज्ञान, तुम्हारी सोच, तुम्हारा विश्वास और तुम्हारी हिम्मत। अपनी शक्ति को, अपने मूल्य को, अपनी क्षमता को पहचानो। यदि एक बार तुम ने अपनी क्षमता और शक्ति को पहचान लिया तो तुम जीवन में वह सब कुछ प्राप्त कर पाओगे जिसे तुम प्राप्त करना चाहते हो।"
क्या वास्तविक जीवन में हमारा हाल भी इस युवक की भांति नहीं है? युवक की भांति हमें भी यह ज्ञात नहीं है कि भगवान ने हमें कितना समर्थवान बनाया है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति माननीय ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा था: "भगवान, जो कि हमारा रचयिता है, ने हमारे मन और मष्तिक में अपार शक्तियों एवम योग्यताओं का भंडार बना रखा है। हमें इस भंडार का उचित उपयोग करना चाहिए।
सीख- ईश्वर ने हमें अपार क्षमताएं दी है , हमें उनको पहचानना है तथा अपने कर्तव्य का पालन निष्ठा पूर्वक करना है जिसमें राष्ट्र हित निहित है।
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