रस किसे कहते हैं ? रस कितने प्रकार के होते हैं?
रस शब्द आनन्द का पर्याय है। रसवादी आचार्यों ने काव्य मे रस को ही मुख्य माना है। उन्होंने रस को काव्य की आत्मा कहा हैं। जैसे आत्मा के बिना शरीर का कोई मूल्य नही उसी प्रकार रस के बिना काव्य भी निर्जीव माना जाता हैं।
इस लेख को छोड़कर आपको और कही जानें की आवश्यकता नहीं हैं क्योंकि इसमें रस के बारें में सम्पूर्ण जानकारी दी गई हैं।
किया गया है। साहित्य शास्त्र मे रस का अर्थ अलौकिक या लोकोत्तर आनंद होता हैं।
दूसरे शब्दों में जिसका आस्वादन किया जाये वही रस है। रस का अर्थ आनन्द है , अर्थात् काव्य को पढ़ने, सुनने या देखने से मिलने वाला आनन्द ही रस है।
श्रृंगार रस का उदाहरण " बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।
सौंह करें, भौंहनि हँ सें, देन नट जाय।।
2.वियोग ; नायक-नायिका के बिछुड़ने या दूर देश मे रहने की स्थिति का वर्णन, वियोग श्रृंगार की व्यंजना करता हैं।
उदाहरण; "भूषन वसन विलोकत सिय के प्रेम विवस मन कम्प, पुलक तनु नीरज नीर भये पिय के।"
यहाँ आलम्बन सीता तथा आश्रय राम है।
इस लेख को छोड़कर आपको और कही जानें की आवश्यकता नहीं हैं क्योंकि इसमें रस के बारें में सम्पूर्ण जानकारी दी गई हैं।
(1)रस किसे कहते है? (Ras kise kahte hai)
काव्य मे रस का अर्थ आनन्द स्वीकारकिया गया है। साहित्य शास्त्र मे रस का अर्थ अलौकिक या लोकोत्तर आनंद होता हैं।
दूसरे शब्दों में जिसका आस्वादन किया जाये वही रस है। रस का अर्थ आनन्द है , अर्थात् काव्य को पढ़ने, सुनने या देखने से मिलने वाला आनन्द ही रस है।
रस की निष्पत्ति विभाव, अनुभाव, संचारी भाव के संयोग से होती है।
(2)रस की परिभाषा (Ras ki Paribhasha)
" काव्य के पढ़ने सुनने अथवा उसका अभिनय देखने मे पाठक, श्रोता या दर्शक को जो आनंद मिलता है, वही काव्य मे रस कहलाता हैं।"रस 10 प्रकार के होते हैं-:
दसों रस एवं उनके स्थायी भाव
रस = स्थायी भाव
1. श्रृंगार रस = रति
2. हास्य रस = हास
3. करूण रस = शोक
4. रौद्र रस = क्रोध
5. वीभत्स रस = जुगुप्सा
6. भयानक रस = भय
7. अद्धभुत रस = विस्मय
8. वीर रस = उत्साह
9. शान्त रस = निर्वेद
10. वात्सल्य रस = वत्सल
1. श्रृंगार रस = रति
2. हास्य रस = हास
3. करूण रस = शोक
4. रौद्र रस = क्रोध
5. वीभत्स रस = जुगुप्सा
6. भयानक रस = भय
7. अद्धभुत रस = विस्मय
8. वीर रस = उत्साह
9. शान्त रस = निर्वेद
10. वात्सल्य रस = वत्सल
आचार्य भरत ने नाटक मे आठ रस माने है। परवर्ती आचार्यों ने शान्त रस को अतिरिक्त स्वीकृति देकर कुल नौ रसों की पहचान निश्चित की। काव्य मे महाकवि सूरदास ने वात्सल्य से संबंधित मधुर पद लिखे, तो एक अन्य दुसरा नया रस वात्सल्य रस का जन्म हुआ।
1. श्रृंगार रस की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।
1.संयोग ; श्रृंगार रस का स्थायी भाव रति हैं। नर और नारी का प्रेम होकर श्रृंगार रस रूप मे परिणत होता हैं। इस रस मे नायक-नायिका के संयोग (मिलन) की स्थिति का वर्णन होता हैं।श्रृंगार रस का उदाहरण " बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।
सौंह करें, भौंहनि हँ सें, देन नट जाय।।
2.वियोग ; नायक-नायिका के बिछुड़ने या दूर देश मे रहने की स्थिति का वर्णन, वियोग श्रृंगार की व्यंजना करता हैं।
उदाहरण; "भूषन वसन विलोकत सिय के प्रेम विवस मन कम्प, पुलक तनु नीरज नीर भये पिय के।"
यहाँ आलम्बन सीता तथा आश्रय राम है।
सीता के आभूषण, वस्त्र आदि उद्दीपन हैं।
कम्पन, पुलक, आँख मे आँसू अनुभाव हैं। दर्द, स्मृति भाव हैं।
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