हरि हैं राजनीति पढ़ि आए संदर्भ प्रसंग सहित व्याख्या।
हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए। इक अति चतुर हुते पहिले ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए। बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए। उधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए। अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए । तेक्यौं अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए। राज धरम तौ यह 'सूर', जो प्रजा न जाहिं सताए ।
संदर्भ- गोपियां भगवान कृष्ण को राजनीति सीख लिया ऐसा कह रही है ।
प्रसंग – प्रस्तुत पद में गोपियाँ अपने प्रियतम कृष्ण को बहुत बड़ा राजनीतिज्ञ मानती हैं क्योंकि उन्होंने गोपियों की बात समझे-सुने बिना योग-साधना का सन्देश भेज दिया है।
भावार्थ-एक गोपी अपनी प्रिय सखी से कहती है कि हमारे प्रियतम मथुरा जाकर बहुत बड़े राजनीतिज्ञ हो गए हैं। वे हमारे साथ भी छल-कपट का व्यवहार कर रहे हैं। उन्होंने उद्धव जी के द्वारा हमारे लिए जो योग-सन्देश भेजा है कि गोपियाँ मुझे भूलकर योग-साधना करें। क्या यह सन्देश तुम्हारी समझ में आया है ? अर्थात् क्या यह सन्देश भेजना उचित है ? एक तो कृष्ण पहले से ही बहुत चालाक एवं छलिया थे क्योंकि उन्होंने हम सब को अपने प्रेम जाल में फँसा लिया था तथा स्वयं हमें विरहाग्नि में तड़पता हुआ छोड़कर मथुरा चले गए। अब तो राजनीति के बड़े-बड़े ग्रन्थों को पढ़कर और भी चालाक हो गए. हैं। उन्होंने अपनी विशाल बुद्धि एवं राजनीतिज्ञ होने का परिचय देते हुए हम स्त्रियों को योग-साधना का सन्देश भेजा है। अतः मथुरा की राजनीति में पड़कर अब तो वे अपने-पराए का भेद ही भूल गए हैं। हे सखि ! हमारे पूर्वज बहुत ही परोपकारी एवं सज्जन थे जो दूसरों का हित करने के लिए इधर-उधर भाग-दौड़ करते फिरते थे। इसके विपरीत दूसरी ओर उद्धव रूपी भ्रमर हैं जो हम भोली-भाली अबलाओं को सताने के लिए यहाँ चले आए हैं। अब तो कृष्ण से हम इतनी ही कामना करती हैं कि मथुरा जाते समय वे हमारा मन (दिल) चुराकर ले गए उसे लौटा दें। कृष्ण से हमें ऐसे अनीतिपूर्ण आचरण करने की आशा नहीं थी कि जो हमारी भावनाओं पर कुठाराघात करके तथा नीतिज्ञ होते. हुए भी अनीति के मार्ग पर चल रहे हैं।
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