एकांकी किसे कहते हैं। एकांकी की परिभाषा तथा प्रमुख एकांकीकार।।

एकांकी किसे कहते हैं। एकांकी की परिभाषा तथा प्रमुख एकांकीकार।।



एकांकी का अर्थ तथा सम्पूर्ण जानकारी इस प्रकार हैं - 
एकांकी गद्य की लोकप्रिय विधा है ! एकांकी एक अंक का नाटक होता है ! आज के व्यस्त जीवन में मानव कम से कम समय में मनोरंजन चाहता है ! अतः साहित्य ऐसी विधा की कामना करता है जो अपने लघु कलेवर द्वारा मानव की ज्ञान पिपासा और मनोरंजन की भूख को शांत कर सके ! एकांकी इस लक्ष्य की पूर्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन है ! हिंदी में एकांकी विधा का सूत्रपात भारतेन्दु युग से माना जाता है,यद्यपि जयशंकर प्रसाद के '' एक घूँट '' को हिंदी का प्रथम एकांकी होने का गौरव प्राप्त है, किन्तु आधुनिक एकांकी का जनक डॉ रामकुमार वर्मा को माना जाता है ! 
एकांकी न तो नाटक का संक्षिप्त रूप है  न वह नाटक का एक अंक है ! 
यह स्वयं में पूर्ण रचना है ! डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार - '' एकांकी में एक ही घटना होती है , वह नाटकीय कौशल से कौतुहल का संचार करते हुए चरम सीमा तक पहुँचती है! उसमे कोई गौण प्रसंग नहीं रहता है ! कथा-वस्तु भी स्पष्ट कौतुहल से युक्त रहती है ; इसमें विस्तार के लिए अवकाश नहीं होता !'' 
प्रसाद के बाद एकांकी के क्षेत्र में डॉ. रामकुमार वर्मा का पदार्पण हुआ ! ''बादल की मृत्यु '' नामक एकांकी ''एक घूँट  '' नामक एकांकी के समकक्ष माना जाता है ! कतिपय विद्वान 1935 में प्रकाशित भुवनेश्वर प्रसाद के ''कारवाँ '' नामक एकांकी को प्रथम एकांकी की श्रेणी में रखते है ! विगत अनेक सालों से हिंदी का एकांकी कलेवर अपने युग के अनुरूप परिवर्तित होता रहा है ! साठ -पैसठ वर्षों में एकांकीकारों ने पारिवारिक, राजनीतिक , मनोवैज्ञानिक , धार्मिक तथा व्यक्तिगत समस्याओं को यथार्थ के धरातल पर अंकित किया है ! रेडियो रूपक के रूप में भी एकांकी को नवीन दिशा प्राप्त हुई है ! 
एकांकी का उद्भव और विकास :- 
             हिंदी एकांकी का मूल रूप स्त्रोत है संस्कृत नाटकों में एक अंक वाले व्यायोग , प्रहसन , वीथी, गोष्ठी , नाटिका आदि ! 
वर्तमान हिंदी एकांकी के स्वरूप में विद्वानों का मत है की इस पर पाश्चात्य परंपरा का  प्रभाव विद्द्यमान है यद्द्यपि प्राचीन भारत में एकांकी जैसी  रचनाओं  की विकसित परंपरा विद्द्यमान थी अर्थात एकांकी की आत्मा भारतीय है और कलेवर पाश्चात्य ! आधुनिक एकांकी संस्कृत और पाश्चात्य एकांकी के मध्य दोनों के न्यूनाधिक प्रभाव से युक्त है ! 
हिंदी एकांकी का विकास क्रम :- 
  1. भारतेन्दु - द्विवेदी युग - 1875 से 1928 
  1. प्रसाद युग - 1929 से 1937 
  1. प्रसादोत्तर युग - 1938 से 1947 
  1. स्वातंत्रोत्तर युग - 1948 से अब तक 




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