नाटक की पूरी जानकारी , हिंदी नाटकों का विकास क्रम , नाटक की परिभाषा
नाटक की पूरी जानकारी , हिंदी नाटकों का विकास क्रम , नाटक की परिभाषा
( भाग - १ आज के आर्टिकल में अगर आपका स्नेह बना रहा तो अगले भाग में नाटक का विकास क्रम विस्तार पूर्वक बताएँगे आप से निवेदन तथा आशा है की आप अधिक से अधिक शेयर जरूर करेंगे और हमें कमेंट करके फीडबैक देंगे )
नाटक का अर्थ तथा परिभाषा -
नाटक दृश्य काव्य के अंतर्गत आता है! इसका प्रदर्शन रंगमंच पर होता है ! भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने नाटक का लक्षण देते हुए लिखा है - " नाटक शब्द का अर्थ है नट लोगों की क्रिया ! दृश्य काव्य की संज्ञा-रूपक है ! रूपकों में नाटक ही सबसे मुख्य है इससे रूपक मात्र को नाटक कहते हैं!"
बाबू गुलाबराय के अनुसार - नाटक में जीवन की अनुकृति को शब्दगत संकेतों में संकुचित करके उसको सजीव पात्रों द्वारा एक चलते फिरते सप्राण रूप में अंकित किया जाता है! नाटक में फैले हुए जीवन व्यापार को ऐसी व्यवस्था के साथ रखते हैं कि अधिक से अधिक प्रभाव उत्पन्न हो सके !
नाटक का प्रमुख उपादान है उसकी रंगमंचीयता !
हिंदी साहित्य में नाटकों का विकास वास्तव में आधुनिक काल में भारतेन्दु युग में हुआ !
भारतेन्दु युग से पूर्व भी कुछ नाटक पौराणिक , राजनैतिक , सामाजिक आदि विषयों को लेकर रचे गए !
सत्रहवीं -अठारहवीं शताब्दी में रचे गए नाटकों में मुख्य हैं - हृदयरामकृत - हनुमन्नाटक,
बनारसीदास - समयसार , गुरुगोविंद सिंह - चण्डीचरित्र ,
यशवंतसिंह - प्रबोध चंद्रोदय ,
नवाज - शकुंतला नाटक ,
श्रीरघुराम - सभासार ,
कृष्णजीवन लक्ष्मीराम - करुणाभरण आदि!
हिंदीं का प्रथम नाटक - आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी के अनुसार - विश्वनाथ सिंह कृत - आनंद रघुनन्दन ,
भारतेन्दु जी के मतानुसार - गोपाल चंद्र गिरिधर कृत - 'नहुष' को माना गया,परन्तु वास्तव में ये काव्यात्मक संवाद मात्र है नाटक नहीं!
हिंदी नाटकों का विकास क्रम -
हिंदी नाटकों के विकास को हम निम्न चार भागों में बाँट सकते हैं -
१. भारतेन्दु-युगीन नाटक ( 1850 से 1900 ई.)
२. द्विवेदी - युगीन नाटक ( 1901 से 1920 ई. )
३. प्रसाद - युगीन नाटक ( 1921 से 1936 ई.)
४. प्रसादोत्तर - युगीन नाटक ( 1937 से आज तक )
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