राजभाषा और राष्ट्रभाषा में क्या अंतर है ?
राजभाषा और राष्ट्रभाषा में अंतर
Q. राजभाषा और राष्ट्रभाषा में अंतर लिखिए।
Ans. राजभाषा का अर्थ है - राजा या राज्य की भाषा।
वह भाषा जिसमें शासक या शासन का काम होता है और राष्ट्रभाषा वह है जिसका व्यवहार राष्ट्र के सामान्य जन करते हैं। राज भाषा का प्रयोग क्षेत्र सीमित होता है, जैसे वर्तमान काल में भारत सरकार के कार्यालयों और सार्वजनिक क्षेत्रों के व्यवस्थाओं के अतिरिक्त कुछ प्रादेशिक सरकारों के - हरियाणा , उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश, बिहार ,राजस्थान ,दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में राजकाज हिंदी में होता है। तमिलनाडु ,बंगाल ,महाराष्ट्र ,आंध्र प्रदेश की सरकारें अपनी अपनी भाषा में कार्य करती हैं ,हिंदी में नहीं। राष्ट्रभाषा का क्षेत्र विस्तृत और देशव्यापी होता है। राष्ट्रभाषा सारे देश के संपर्क भाषा है।
राष्ट्रभाषा के साथ जनता का भावात्मक लगाव होता है क्योंकि उसके साथ जनसाधारण की सांस्कृतिक परंपरा जुड़ी होती है। राजभाषा के प्रति वैसा सम्मान हो सकता है लेकिन नहीं भी हो सकता है, क्योंकि वह अपने देश की भी हो सकती है, किसी गैर देश से आए शासक की भी हो सकती है। अकबर के समय से लेकर मैकाले के काल तक फारसी राजभाषा रही और स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले यहां अंग्रेजी थी, अब भी है। देश की संस्कृति से राजभाषा का कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है। राष्ट्रभाषा सदा कोई स्वदेशी भाषा ही होगी। भारतीय जनता के त्योहारों का आदान-प्रदान फारसी अंग्रेजी में निश्चित ही होता था अब ना हो सकता है।
राज्य भाषा की अभिव्यक्ति सीमित विषयों तक होती है - विधि,सरकारी परिवहन,प्रशासन आदि। और यह अभिव्यक्ति क्रमशः रूड़ और रूक्ष हो जाती है। इसमें लालित्य, मुहावरेदार या शैली वैविध्य का कोई स्थान नहीं है। प्रत्येक कार्यालय की बनी बनाई शब्दावली है, वाक्यों का एक ढर्रा है। राष्ट्रभाषा का संबंध जीवन के प्रत्येक पक्ष से है।
राजभाषा राष्ट्रभाषा पर अपना प्रभाव डालती है। कारण यह है कि जो भी भाषा राजभाषा के पद पर आसीन होती है लोग उसी में शिक्षा पर आवश्यक समझते हैं। रोजी-रोटी सामाजिक प्रतिष्ठा और भौतिक लाभ के लिए युवा वर्ग में उसी भाषा का बोलबाला होता है। शासन की भाषा का अनुकरण होने लगता है। कचहरी और सरकारी कार्यालय में संपर्क रखने वाले लोगों के द्वारा वही भाषा जनसाधारण प्रचलित होती है।
Q. राजभाषा नियम 1976 की विशेषताएं बताइए।
Ans.
(1) राजभाषा नियम 1976 के अंतर्गत कुल 12 नियम बनाए गए तमिलनाडु राज्य को छोड़कर देश के सभी राज्यों पर समान रूप से नियम लागू होते हैं।
(2) हिंदी के प्रगामी प्रयोग को प्रभावी ढंग सेे लागू करने के उद्देश्य से पूरे भारत को तीन क्षेत्रों में बांटा गया है -
क्षेत्र (क) - समस्त हिंदी भाषी राज्य एवं संघ राज्य क्षेत्र ( बिहार , हरियाणा , हिमाचल प्रदेश , मध्यप्रदेश , राजस्थान , उत्तर प्रदेश , दिल्ली एवं अंडमान निकोबार दीप समूह)।
क्षेत्र (ख) - गुजरात, महाराष्ट्र तथा पंजाब,चण्डीगढ।
क्षेत्र (ग) - इसके अंतर्गत में राज्य संघ राज्य क्षेत्र आते हैं जो क्षेत्र 'क'और 'ख' के अंतर्गत नहीं आते।
(3) राजभाषा नियम 1976 में हिंदी पत्राचार के संबंध में स्पष्ट दिशा निर्देश दिए गए हैं।
(4) राजभाषा नियम 1976 के नियम 5 के अंतर्गत प्रावधान है कि व्यक्तिगत अथवा राज्य सरकार द्वारा हिंदी में भेजे गए पत्रों का जवाब हिंदी भाषा में अनिवार्य रूप से देना होगा।
(5) कोई भी कर्मचारी हिंदी अंग्रेजी में अभ्यावेदन कर सकता है।
(6) नियम पाच के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि सरकारी कार्यालय से जारी होने वाले परिपत्र, प्रशासनिक रिपोर्ट , कार्यालय आदेश, अधिसूचना , करार , संधियों , विज्ञापन तथा निविदा सूचना आदि अनिवार्य रूप से हिंदी - अंग्रेजी द्विभाषी रूप से जारी किए जाएंगे।
(7) केंद्रीय सरकार के अधिकारी या कर्मचारी फाइलों में टिप्पणी केवल हिंदी या अंग्रेजी में लिख सकते हैं। किसी अन्य भाषा में व उसका अनुवाद प्रस्तुत नहीं कर सकते।
(8) राजभाषा नियम 1976 के नियम 12 के अनुसार केंद्रीय सरकार के कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान का यह उत्तर दायित्व होगा कि वे सुनिश्चित करें कि राजभाषा अधिनियम एवं राजभाषा नियमों के उपबंधों का समुचित पालन किया जा रहा है और उसके सुनिश्चित पालन के लिए प्रभावकारी जांच बिंदु निर्धारित करें।
(9) संक्षेप में कहा जा सकता है कि राजभाषा नियम 1976 से राजभाषा हिंदी प्रगामी प्रयोग में काफी मात्रा में गति आई तथा केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों को भी हिंदी में कामकाज करने में निश्चित रूप से प्रोत्साहन मिला।
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