Sur Ke pad summary of the poem
Sur Ke pad summary of the poem।
सूरदास ने अपने काव्य के द्वारा कृष्ण की लीलाओं को जन-जन तक पहुंचाया है। वे सखा भाव से कृष्ण की आराधना करने वाले भक्त कवि हैं।उन्होंने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि सगुन ईश्वर हमारे लिए अधिक अनुकूल है क्योंकि उसके आचरण हमारे लिए आदर्श बनते हैं। उनके अभिनय के पदों में ईश्वर की कृपा और भक्तों की न्यूनता ओं का वर्णन किया गया है।वह भक्त के रूप में अपने गुणों का बखान करते हैं और अपने आराध्य के समुद्र स्वरूप की भी सराहना करते हैं। सूरदास प्रेम और सौंदर्य के अमर गायक हैं।उन्होंने मुख्यता वात्सल्य और श्रृंगार का ही चित्रण किया है लेकिन वे इस क्षेत्र का कोना कोना झांक आए हैं।बाल जीवन का कोई ऐसा पक्षी नहीं है जिस पर कवि की दृष्टि ना पड़ी हो गोपियों के प्रेम और विरह का वर्णन भी बहुत आकर्षक हैं।संयोग और वियोग दोनों का मर्मस्पर्शी चित्रण सूरदास ने किया है इन्होंने एक रस के अंतर्गत नए-नए प्रसंगों की उदभावना की है। इनके सूरसागर में गीती काव्य के भीतर से महाकाव्य का स्वरूप झांकता हुआ प्रतीत होता है। सूर के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता है इनकी तन्मयता। व्हिच इस प्रसंग का वर्णन करते हैं उसमें आत्म विभोर कर देते हैं।सूरदास की भक्ति मुख्यता साक्षी भाव की है परंतु उसमें विनय दांपत्य और माधुरी भाव का भी मिश्रण है। सूरदास का संपूर्ण काव्य संगीत की राग रागिनीओं में बंधा हुआ पद शैली का गीत काव्य है।सूरदास के पदों में ब्रजभाषा का बहुत ही परिष्कृत और निकला हुआ रूप देखने को मिलता है। माधुरी गुण की प्रधानता के कारण इनकी भाषा प्रभाव उत्पादक हो गई है।
सूरदास की मृत्यु सन 1583 के लगभग मानी जाती है।
सूरदास का जन्म 1478 स्त्री में हुआ था।
सूरदास की मुख्य रचनाएं हैं सूरसागर एवं सोर्स अरावली तथा साहित्य लहरी।
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