अनुशासन का महत्व

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                                   निबंध-: विद्यार्थी और अनुशासन
                                                      अथवा
                                           अनुशासन का महत्व

रूपरेखा-:
1. प्रस्तावना
2. अनुशासित जीवन
3. अनुशासन का महत्व
4. अनुशासन के प्रकार
5. अनुशासन का तात्पर्य
6. विद्यार्थी एवं अनुशासन
7. उपसंहार

1. प्रस्तावना- समस्त सृष्टि नियम बद्ध तरीके से संचालित हो रही है। सूर्य एवं चंद्र नियमित रूप से उदय होकर दुनिया को प्रकाश लुटाते हैं। जिस प्रकार प्रकृति के नियम हैं उसी भांति समाज, देश तथा धर्म की भी कुछ मर्यादाएँ होती है। कुछ नियम होते हैं, कुछ आदर्श निर्धारित होते हैं। आदर्शों के अनुरूप जीवन डालना अनुशासन की परिधि में आता है।

2. अनुशासित जीवन- वास्तव में अनुशासित जीवन बहुत ही मनोहर तथा आकर्षक होता है । इससे जीवन दिन प्रतिदिन प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होता है। अनुशासन के पालन से जीवन में मान मर्यादा मिलती है । जो जीवन अनुशासित नहीं होता वह  धिक्कार तथा तिरस्कार का पात्र बनता है।

3. अनुशासन का महत्व-  अनुशासन का जीवन से गहरा लगाव है। जो समाज अथवा राष्ट्र अनुशासन में बंधा होता है , उसकी उन्नति अवश्यंभावी है। दुनिया की कोई भी ताकत उसे बढ़ने से रोक नहीं पाती। यदि अनुशासन का उल्लंघन किया जाए तो राष्ट्र तथा समाज पतन की दिशा में बढ़ता चला जाता है।

4. अनुशासन के प्रकार-  अनुशासन के अनेक प्रकार हैं। नैतिक अनुशासन, सामाजिक अनुशासन तथा धार्मिक अनुशासन। अनुशासन बाहरी तथा आंतरिक दो प्रकार का होता है। जब  भय तथा  डंडे के बल पर अनुशासन स्थापित किया जाता है , तो इस प्रकार के अनुशासन को बाहरी अनुशासन कहकर पुकारा जाता है। जब व्यक्ति अथवा बालक स्वेच्छा से प्रसन्न मन से नियमों का पालन करता है, तो इस प्रकार का अनुशासन आंतरिक अनुशासन की श्रेणी में आता है।

5. अनुशासन का तात्पर्य- अनुशासन शब्द दो शब्दों के मेल से बना है।
पहला "अनु " जिसका अर्थ है पीछे , दूसरा "शासन"  अर्थात शासन के पीछे अनुगमन करना।

6. विद्यार्थी एवं अनुशासन- वैसे हर मानव के लिए अनुशासन का पालन करना आवश्यक है , लेकिन छात्रों के लिए तो अनुशासन में रहना अमृत्तुल्य है।  छात्र जीवन मानव जीवन की आधारशिला है।
 आज छात्रों द्वारा परीक्षा का बहिष्कार, सार्वजनिक स्थानों में तोड़फोड़़ तथा पुलिस के साथ संघर्ष एक आम बात हो गई है। समाचार पत्र छात्रों की अनुशासनहीनता तथा हिंसक घटनाओं की खबर नित्य प्रति प्रकाशित करते रहते हैं । हम इन्हें पढ़कर मात्र इतना कह देते हैं कि यह बहुत बुरी बात है, लेकिन हमारेेेेेे इतना कहने मात्र से इसका निराकरण नहीं होता।क्या कभी हमने शांत मन से यह सोचा है कि यह बीमारी बढ़ती गई तो इसका निराकरण करना हमारे बस की बात नहीं रहेगी ।
छात्र एवं अनुशासन एक सिक्के के दो पहलू हैं। प्राचीन काल में छात्रों को आश्रमों तथा गुरुकुल में गुरु के समीप रहकर शिक्षा प्राप्त करनी पड़ती थी।उनको अनुशासन के कठोर नियमों में बंधकर जीवन यापन करना पड़ता था। वर्तमान समय के छात्रों को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि वह आज अनुशासनहीनता के जिस पथ पर अग्रसर हो रहे हैं , वह उनके भविष्य के लिए घातक तथा अमंगल कारी है।
इसके निराकरण के लिए नियमित रूप से नैतिक शिक्षा, धार्मिक उपदेश तथा जीवन उपयोगी चर्चाएं, प्रार्थना स्थल तथा कक्षाओं में होनी चाहिए जिससे छात्र सद्मार्ग के  अनुगामी बन सके।  अभिभावकों, शिक्षाविदों तथा अध्यापकों को भी स्वयं के आदर्श प्रस्तुत कर के छात्रों को देश का उत्तम नागरिक बनाने में यथाशक्ति सहयोग देना चाहिए।

7. उपसंहार- छात्र देश के भाग्य विधाता हैं, शक्ति के पुंज हैं। देश उनकी ओर आशा भरी दृष्टि से निहार रहा है। यदि वे सुधरे तो देश सुधरेगा। उनके ना सुधारने पर देश रसातलगामी ही बनेगा।


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 धन्यवाद जय हिंद जय भारत...

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