कबीर दास के 50+ दोहे अर्थ सहित | Kabir Das Ke Dohe in Hindi with Meaning (शिक्षा, जीवन और प्रेरणा)
कबीर दास के दोहे अर्थ सहित | Kabir Das Ke Dohe in Hindi with Meaning
प्रस्तावना – भारतीय संत परंपरा में कबीर दास जी का नाम अमर है। 15वीं शताब्दी के महान संत, समाज सुधारक और कवीर वाणी के प्रणेता कबीर ने अपने दोहों के माध्यम से जीवन, धर्म, शिक्षा और समाज को नई दिशा दी।
उनके दोहे सरल, सहज और गहन हैं। यही कारण है कि "कबीर दास के दोहे" आज भी विद्यार्थियों, अध्यापकों और आम जनमानस को शिक्षा और प्रेरणा देते हैं।
इस लेख में हम कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित प्रस्तुत कर रहे हैं। ये दोहे शिक्षा, धर्म, जीवन मूल्य और समाज सुधार से संबंधित हैं।
कबीर दास का जीवन संक्षेप
जन्म: 1398 ईस्वी (काशी, वाराणसी)
माता-पिता: कबीर जी को नीरू और नीमा (जुलाहा दंपत्ति) ने पाला।
शिक्षा: – कबीर ने किसी गुरु की औपचारिक शिक्षा नहीं ली, लेकिन संत रामानंद को अपना गुरु माना।
योगदान: – उन्होंने मूर्तिपूजा, अंधविश्वास और पाखंड का विरोध किया।
रचनाएँ: "बीजक", "साखी", "सबद" और "रामानी" में उनके उपदेश मिलते हैं।
कबीर दास के प्रमुख दोहे और उनके अर्थ।
1.
"बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥"
👉 अर्थ: केवल बड़ा होने से कोई महान नहीं बनता। खजूर का पेड़ भले ही ऊँचा होता है, पर न तो उसकी छाया किसी को लाभ देती है और न ही फल आसानी से मिलते हैं। इसी तरह, केवल धन या पद बड़ा होने से कोई उपयोगी नहीं, बल्कि तभी महान है जब उसका जीवन दूसरों के लिए उपयोगी हो।
2.
"धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥"
👉 अर्थ: जीवन में धैर्य रखना चाहिए। हर कार्य समय आने पर ही पूर्ण होता है। जैसे माली चाहे जितना पानी डाल दे, पर फल ऋतु आने पर ही लगते हैं।
3.
"पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥"
👉 अर्थ: केवल किताबें पढ़ने से कोई विद्वान नहीं बनता। सच्चा ज्ञान प्रेम और करुणा में है। जो ‘प्रेम’ शब्द का अर्थ समझ लेता है, वही सच्चा विद्वान है।
4.
"साईं इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय॥"
👉 अर्थ: कबीर ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें उतना ही दें जितना उनके परिवार के लिए पर्याप्त हो और साथ ही उनके घर आने वाला अतिथि भी भूखा न जाए। यह संतुलित जीवन की सीख है।
5.
"जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहीं।
सब अंधियारा मिट गया, दीपक देखा माहीं॥"
👉 अर्थ: जब मनुष्य अपने अहंकार में रहता है तो उसे ईश्वर का बोध नहीं होता। लेकिन जब अहंकार समाप्त होता है तो ईश्वर प्रकट हो जाते हैं।
6.
"दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय॥"
👉 अर्थ: लोग दुःख में ईश्वर को याद करते हैं, लेकिन सुख में भूल जाते हैं। यदि सुख में भी भगवान का स्मरण करें तो जीवन में दुःख नहीं आएगा।
7.
"माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोहि।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोहि॥"
👉 अर्थ: मिट्टी कुम्हार से कहती है कि आज तू मुझे रौंद रहा है, पर एक दिन ऐसा आएगा जब मौत के बाद तू भी इसी मिट्टी में मिल जाएगा। यह जीवन की नश्वरता की शिक्षा है।
8.
"निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय॥"
👉 अर्थ: अपने आलोचक को हमेशा पास रखना चाहिए। उसकी बातें हमें हमारी गलतियाँ सुधारने का अवसर देती हैं। निंदक बिना साबुन-पानी के हमारे स्वभाव को शुद्ध करता है।
9.
"काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब॥"
👉 अर्थ: जो कार्य कल करने की सोच रहे हो, उसे आज ही पूरा करो। और जो आज करना है, उसे अभी करो। क्योंकि समय अनिश्चित है, कल का भरोसा नहीं।
10.
"दर्पण देखत मुखड़ा, निंदा करि न कोय।
जैसा देखा आपना, तैसा ही कहि होय॥"
👉 अर्थ: व्यक्ति को दूसरों की निंदा करने से पहले खुद को देखना चाहिए। जैसे दर्पण में अपना चेहरा देखकर इंसान अपनी कमियाँ पहचानता है, वैसे ही दूसरों को दोष देने से पहले आत्मचिंतन करना चाहिए।
कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे (Kabir Das Ke Dohe in Hindi with Meaning) – भाग 2
11.
"साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय॥"
👉 अर्थ: सच्चा साधु वही है जो अनाज साफ़ करने वाले सूप की तरह हो। यानी, वह अच्छे को ग्रहण करे और बुरे को त्याग दे।
12.
"तेरा सांई तुझ में, जो तू जाने मन।
जोगी होय, जोगी नहीं, यह तो है अंजन॥"
👉 अर्थ: ईश्वर कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर ही है। उसे पहचानना ही सच्चा योग है। केवल भेष बदल लेने से योगी नहीं बना जा सकता।
13.
"करता था तो क्यों न किया, अब कर रहा क्यों होत।
बिन कर किये न होए, कर करि करत न होत॥"
👉 अर्थ: जब कुछ करने का समय था तब क्यों नहीं किया? अब केवल पछताने से कुछ नहीं होगा। बिना कार्य किए कोई परिणाम नहीं मिलता।
14.
"जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥"
👉 अर्थ: किसी व्यक्ति की जाति पूछने से बेहतर है कि उसका ज्ञान और कर्म देखें। जैसे तलवार का महत्व होता है, म्यान का नहीं।
15.
"कबीरा खड़ा बाज़ार में, लिए लुकाठी हाथ।
जो घर फूँके आपना, चले हमारे साथ॥"
👉 अर्थ: कबीर कहते हैं कि सच्चे साधना मार्ग पर वही चल सकता है जो अपने भीतर के अहंकार और बुराइयों को पूरी तरह त्याग दे।
16.
"गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूँ पाय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय॥"
👉 अर्थ: कबीर कहते हैं कि यदि गुरु और भगवान दोनों सामने हों तो पहले गुरु को प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि गुरु ही हमें भगवान तक पहुँचने का मार्ग दिखाता है।
17.
"तिनका कबहुँ ना निंदिये, जो पाँव तले होय।
कबहुँ उड़ आँखिन पड़े, पीर घनेरी होय॥"
👉 अर्थ: कभी भी छोटे या कमजोर को तुच्छ मत समझो। जैसे पाँव तले पड़ी तिनका भी आँख में चला जाए तो भारी पीड़ा देता है।
18.
"कबीरा ते नर अंध हैं, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर॥"
👉 अर्थ: जो लोग गुरु की महिमा नहीं समझते वे अंधे समान हैं। यदि भगवान नाराज़ हो जाएं तो गुरु से मनाया जा सकता है, लेकिन यदि गुरु नाराज़ हो जाए तो कोई ठौर नहीं।
19.
"झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद।
खलक चबैना कामरा, सपने हुइ न सोद॥"
👉 अर्थ: सांसारिक सुख केवल क्षणिक है। यह वास्तविक सुख नहीं है। लोग इसे सच्चा मानकर भ्रमित हो जाते हैं।
20.
"कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर।
जो पर पीर न जाने, सो काफिर बेपीर॥"
👉 अर्थ: वही सच्चा संत है जो दूसरों के दुःख को अपना दुःख समझे। जो पराए दुःख को न समझे, वह ईश्वर से दूर है।
21.
"कबीरा यह तन जाल है, सब संसारि पिसार।
फँसि रह्यो जो मछरिया, सो न बच्यो मझधार॥"
👉 अर्थ: यह शरीर मछली पकड़ने के जाल जैसा है और संसार एक विशाल नदी। इसमें जो फँस गया, वह मझधार से पार नहीं हो सकता।
22.
"पानी में मीन प्यासी, मोहे सुन सुन आवे हांसी।"
👉 अर्थ: जिस प्रकार मछली पानी में रहकर भी प्यासी रहती है, वैसे ही मनुष्य ईश्वर के होते हुए भी उसकी खोज में भटकता रहता है।
23.
"सुखिया सब संसार है, खायै और सोय।
दुखिया दास कबीर है, जागै और रोय॥"
👉 अर्थ: पूरी दुनिया सुखी है क्योंकि सब खाते-पीते और सोते हैं। लेकिन कबीर दुखी हैं क्योंकि वे रात-दिन ईश्वर की याद में जागते रहते हैं।
24.
"मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
कहा कबीर हरि पाइए, मन ही के परतीत॥"
👉 अर्थ: जीत और हार मन की सोच पर निर्भर है। यदि मन हार मान ले तो इंसान हार जाता है, और यदि मन जीतने का संकल्प करे तो वह सफल होता है।
25.
"कबीरा खड़ा बाज़ार में, लिए लुकाठी हाथ।
जो घर फूँके आपना, चले हमारे साथ॥"
👉 अर्थ: कबीर कहते हैं कि जो अपने भीतर के मोह, लोभ और अहंकार को पूरी तरह नष्ट कर दे वही उनके मार्ग पर चल सकता है।
26.
"कबीरा यह तन न टिके, ज्यों कंचन की धार।
थिर न रहै यह देह को, जैसे पवन बिसार॥"
👉 अर्थ: यह शरीर अस्थिर है, सोने की धार की तरह नाज़ुक और नश्वर। यह कब छूट जाए, कहा नहीं जा सकता।
27.
"अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप॥"
👉 अर्थ: किसी भी चीज़ की अति अच्छी नहीं होती। अधिक बोलना, अधिक मौन रहना, अधिक वर्षा या अधिक धूप – सबका परिणाम बुरा होता है।
28.
"मन लागो मेरा यार फकीरी में।"
👉 अर्थ: कबीर कहते हैं कि उन्हें वैराग्य और फकीरी में आनंद मिलता है। सांसारिक मोह-माया उन्हें आकर्षित नहीं करती।
29.
"हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या।"
👉 अर्थ: जैसे कंगन हाथ में पहनने से ही समझ आ जाता है, उसे देखने के लिए आईना जरूरी नहीं। उसी तरह ज्ञानी व्यक्ति के लिए विशेष भाषा की आवश्यकता नहीं।
30.
"राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट।
अन्तकाल पछताएगा, जब प्राण जाएंगे छूट॥"
👉 अर्थ: राम नाम का स्मरण जीवन में सबसे बड़ा धन है। इसे जितना अधिक पा सको, पा लो। वरना मृत्यु के समय पछताना पड़ेगा।
कबीर दास की शिक्षाओं का आधुनिक महत्व
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में कबीर के दोहे हमें धैर्य और संतोष की सीख देते हैं।
शिक्षा प्रणाली में उनके "ढाई आखर प्रेम" का संदेश आज भी प्रासंगिक है।
उन्होंने धर्म और जाति के नाम पर होने वाले भेदभाव का विरोध किया, जो आज भी समाज सुधार का संदेश है।
उनके दोहे हमें बताते हैं कि असली ज्ञान प्रेम, करुणा और सहअस्तित्व में है।
निष्कर्ष–
कबीर दास जी की वाणी अमर है। उनके दोहे केवल साहित्यिक काव्य नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शन हैं। कबीर दास के दोहे अर्थ सहित पढ़कर हम सीखते हैं कि –
सच्ची शिक्षा वही है जो जीवन में उपयोगी हो।
अहंकार, लोभ और पाखंड से दूर रहना चाहिए।
प्रेम और करुणा ही सच्चा धर्म है।
👉 इसलिए कहा जाता है –
"कबीर के दोहे जीवन के आईने हैं।"
शिक्षा पर कबीर दास के विचार –कबीर दास जी ने शिक्षा को केवल पढ़ाई-लिखाई तक सीमित नहीं माना, बल्कि सच्ची शिक्षा वही है जो मनुष्य को नैतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से जागरूक बनाए। उनके अनुसार –
शिक्षा का उद्देश्य अहंकार तोड़ना है।
शिक्षा से जीवन में धैर्य, प्रेम और करुणा आनी चाहिए।
सच्चा विद्वान वही है जो दूसरों के लिए उपयोगी हो। निष्कर्ष
कबीर दास जी के दोहे आज भी प्रासंगिक हैं। ये केवल साहित्यिक रचनाएँ नहीं, बल्कि जीवन जीने की सच्ची राह दिखाते हैं।
कबीर दास के दोहे अर्थ सहित पढ़कर हम सीख सकते हैं कि जीवन में विनम्रता, प्रेम, धैर्य और ईश्वर पर विश्वास आवश्यक है।
👉 यदि आप विद्यार्थी हैं तो ये दोहे आपके व्यक्तित्व और शिक्षा में नई दिशा देंगे।
👉 यदि आप शिक्षक हैं तो इन दोहों के माध्यम से छात्रों में जीवन मूल्यों की स्थापना कर सकते हैं।
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शिक्षा पर कबीर के दोहे
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कबीरदास के दोहे और उनका महत्व ।कबीर दास के दोहे अर्थ सहित
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