नकली मोर की दुर्गति की कहानी
पीपल के पेड़ के पास एक मोर नाच रहा था। मोर का सुंदर नाच देखने वालों ने मोर की बहुत प्रशंसा की और कहने लगे- "देखो, मोर कितना सुंदर नाच रहा है। यह पक्षी सुंदर तो है ही, इसका नृत्य भी बहुत सुंदर है।
एक कौआ पास ही पेड़ पर बैठा था। उसने मोर की प्रशंसा सुनी, तो सोचने लगा-" यदि मैं भी मोर के पंख लगा लूं, तो तो मोर जैसा सुंदर बन जाऊंगा। तब मैं भी नाच कर लोगों को खुश किया करूंगा और वे लोग मेरी प्रशंसा किया करेंगे।"
यह सोचकर कोवे ने इधर-उधर बिखरे मोर के पंख उठाएं और अपने पंखों के बीच में लगा लिए। वह बड़ा प्रसन्न हुआ कि अब तो वह भी मोर जैसा सुंदर दिखाई दे रहा है। अरे खुशी-खुशी मोरों के पास गया और बोला-" भाइयों, मैं भी अब मोर बन गया हूं मुझे भी अपने साथ मिला लो।"
उसे देख सभी मोर हंसने लगे।
एक मोर ने तो गुस्से में कहा - " चोर कहीं के! हमारे पंख चुरा कर तू मोर बनना चाहता है? भाग यहां से, नहीं तो तेरे टुकड़े टुकड़े कर देंगे।"
नकली मोर यानि कौवा वहां से घबराकर कौवों के पास गया, तो को इस विचित्र प्राणी को देखकर बोले - " यदि तू मोर बनना चाहता है, तो हमारे पास क्यों आया है? हमारे साथ रहना है,तो कौवा बन कर रह; नहीं तो हम तुझे मार डालेंगे।"
बेचारा नकली मोर ना इधर का रहा ना उधर का। उसने विवश होकर अपने मोर के पंख हटा लिए। तब कहीं जाकर कौवों ने उसे अपनाया। नकली मोर फिर से कौवा ही बन गया।
इस कहानी समय यह प्रेरणा मिलती है कि हमें किसी की देखा देखी नहीं करना चाहिए, हम जैसे भी हैं, ईश्वर की अनुपम रचना है।
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